
पेट से जुड़ी ये आम समस्याएं होती हैं आंत के कैंसर का मुख्य कारण, जानें
कोलन अर्थात बड़ी आंत का असामान्य रूप से सख्त होना, आगे चलकर कोलन कैंसर का रूप ले सकता है। इसके लिए यह समझना जरूरी है कि सामान्य रूप में कोलन कैसी होती है...
कब्ज होना, पेट में गैस बनना, अक्सर पेट ठीक से साफ ना होना, पेट से जुड़ी इन समस्याओं को अधिकांश लोग हल्के में लेते हैं और दैनिक जीवन से जुड़ी समस्याओं में से एक मानकर इन्हें अनदेखा करते रहते हैं। लेकिन आधुनिक गैस्ट्रोएंटेरोलॉजी कहती है कि आंतों में होने वाला हर बदलाव केवल पाचन प्रक्रिया तक सीमित नहीं रहता। कभी-कभी यह शरीर के भीतर चल रही उस प्रक्रिया का संकेत होता है, जो वर्षों बाद कैंसर जैसी गंभीर बीमारी का रूप ले सकती है। यह कैसे होता है, इस बारे में यहां विस्तार से जानें...
क्यों होता है आंत का कैंसर?
गैस्ट्रोएंटेरोलॉजी से जुड़ा ताजा वैज्ञानिक शोध इसी दिशा में एक अहम बात की ओर इशारा करता है कि कोलन अर्थात बड़ी आंत का असामान्य रूप से सख्त होना, आगे चलकर कोलन कैंसर का रूप ले सकता है। इसके लिए यह समझना जरूरी है कि सामान्य रूप में कोलन कैसी होती है और कैसे काम करती है और समस्या होने पर इसमें क्या बदलाव आता है...
स्वस्थ कोलन में लचक होती है। इसकी दीवारें इतनी नरम होती हैं कि भोजन को आगे बढ़ा सकें, पानी को अवशोषित कर सकें और मल को सही समय पर बाहर निकाल सकें।
यह लचीलापन केवल सुविधा नहीं बल्कि आंतों के स्वास्थ्य का आधार है। लेकिन जब कोलन की दीवारें धीरे-धीरे कठोर होने लगती हैं तो इसकी लचक कम होने लगती है और इन क्रियाओं में समस्या होने लगती है।
यदि किसी व्यक्ति को पेट साफ होने में समस्या होने लगी हो तो इसे सामान्य उम्र बढ़ने की प्रक्रिया से जोड़कर नहीं देखना चाहिए। बल्कि इसकी गंभीरता को समझते हुए डॉक्टर से मिलना चाहिए ताकि किसी भविष्य में होने वाली किसी भी समस्या से बचा जा सके।
आंत सख्त क्यों होने लगती है?
गैस्ट्रोएंटेरोलॉजी और ऑन्कोलॉजी की रिसर्च बताती है कि कोलन की दीवारों में लगातार बनी रहने वाली सूजन, फाइब्रोसिस और कोशिकीय तनाव इसकी लोच को कम कर देते हैं। इस विषय में Gut जर्नल और Nature Reviews Gastroenterology में प्रकाशित अध्ययनों में यह स्पष्ट किया गया है कि जब कोलन के ऊतकों में सूजन लंबे समय तक बनी रहती है तो वहां कोलेजन का जमाव बढ़ने लगता है। यही प्रक्रिया धीरे-धीरे आंत को कठोर बनाती है। हालांकि आंत की यह सख्ती अपने आपमें बीमारी नहीं है। लेकिन यह उस वातावरण का निर्माण करती है, जिसमें असामान्य कोशिकाएं पनपने लगती हैं।
आंत का कैंसर
आंत के कैंसर की स्थिति आंत के सख्त होने के साथ ही बनने लगती है। जर्नल ऑफ क्लिनिकल इंवेस्टिगेनशन और Cancer Research में प्रकाशित शोध बताते हैं कि जब कोलन की दीवारें कठोर हो जाती हैं तो वहां मौजूद कोशिकाओं पर यांत्रिक दबाव बढ़ जाता है। यह दबाव कोशिकाओं के डीएनए को प्रभावित करता है और कोशिका विभाजन की गति बदलता है। साथ ही उन संकेतों को सक्रिय करता है, जो कैंसर की ओर ले जाते हैं।
सरल शब्दों में कहें तो सख्त कोलन कैंसर को जन्म नहीं देता। लेकिन वह कैंसर के लिए जमीन तैयार करता है। महत्वपूर्ण बात यह है कि यह बदलाव अचानक नहीं होता। इसीलिए कहा जाता है कि कोलोरेक्टल कैंसर कोई एक दिन में होने वाली बीमारी नहीं है। यह वर्षों तक चलने वाली एक शांत प्रक्रिया है।
द अमेरिकन जर्नल ऑफ गैस्ट्रोएंटेरोलॉजी (The American Journal of Gastroenterology) में प्रकाशित लॉन्ग-टर्म स्टडीज़ बताती हैं कि कोलन की संरचनात्मक कठोरता अक्सर कब्ज़, अधूरा मल त्याग, पेट में भारीपन और बिना कारण थकान जैसे संकेतों के साथ शुरू होती है। यह समस्या गंभीर रूप इसलिए ले पाती है क्योंकि आंत की सख्ती के इन संकेतों को अधिकतर लोग पेट से जुड़ी छोटी-मोटी समस्या समझकर कई-कई साल तक अनदेखा करते रहते हैं।
आंत का कैंसर किन्हें होता है?
रिसर्च साफ बताती है कि जिन कुछ लोगों में आंत का कैंसर होने का जोखिम अधिक होता है, उनमें...
लंबे समय से कब्ज से जूझ रहे लोग
लो फाइबर या बिना फाइबर वाला भोजन लेने वाले
मोटापे से ग्रसित और पेट के आसपास जमा चर्बी वाले व्यक्ति
टाइप-2 डायबिटीज और इंसुलिन रेजिस्टेंस वाले
परिवार में कोलोरेक्टल कैंसर का इतिहास
लगातार बैठे रहने वाली जीवनशैली अपनाने वाले लोग आंत के कैंसर के हाई रिस्क जोन में होते हैं।
World Journal of Gastroenterology में प्रकाशित अध्ययनों के अनुसार, इन कारकों की मौजूदगी कोलन की कठोरता और कैंसर जोखिम के बीच संबंध को और मजबूत करती है।
आंत के कैंसर से कैसे बचें?
आज आधुनिक मेडिकल साइंस में कोलोनोस्कोपी, इलास्टोग्राफी और एडवांस इमेजिंग तकनीकों से कोलन की लोच और संरचना को मापा जा सकता है। कुछ शोधों में यह भी सामने आया है कि कैंसर बनने से कई साल पहले ही कोलन की दीवारों में कठोरता बढ़ने लगती है। यानी शरीर पहले संकेत देता है ताकि समय रहते हम बीमारी की जड़ पर काम कर लें ताकि बीमारी बढ़ ही ना पाए।
यह लेख डराने के लिए नहीं है। यह समझाने के लिए है कि पेट से जुड़े लक्षण केवल पेट तक सीमित नहीं होते। आंतें शरीर का सबसे बड़ा इम्यून और मेटाबॉलिक अंग हैं। जब वहां संतुलन बिगड़ता है तो उसका असर दूर तक जाता है। आधुनिक विज्ञान अब यह मानता है कि कोलोरेक्टल कैंसर केवल एक ट्यूमर नहीं बल्कि वर्षों तक चली आंतों की चुपचाप बिगड़ती सेहत का परिणाम होता है।
डिसक्लेमर- यह आर्टिकल जागरूकता के उद्देश्य से लिखा गया है। किसी भी सलाह को अपनाने से पहले डॉक्टर से संपर्क करें।

