अब 30 की उम्र के बाद जरूरी हैं ये टेस्ट, हार्ट अटैक से होगा बचाव
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दिल का पूरा हाल जानने के लिए 30 की उम्र के बाद कराएं ये टेस्ट

अब 30 की उम्र के बाद जरूरी हैं ये टेस्ट, हार्ट अटैक से होगा बचाव

आधुनिक कार्डियोलॉजी और पब्लिक हेल्थ रिसर्च बताती है कि अगर 30 के बाद सही समय पर टेस्ट और स्क्रीनिंग करा ली जाए तो करीब 80% हार्ट अटैक केसेज को रोका जा सकता है


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30 साल की उम्र वह मोड़ होती है, जब शरीर बाहर से तो पहले की तरह स्वस्थ दिखता है लेकिन अंदर से छोटे-छोटे बदलाव शुरू हो चुके होते हैं। इसे आप ऐसे समझिए जैसे नई सड़क पर पहली दरार आना, जब गाड़ी आराम से चल रही होती है...लेकिन दरार दिखने लगती है। दिल की बीमारी भी ठीक ऐसे ही शुरू होती है। न कोई तेज दर्द, न कोई चेतावनी भरी आवाज। बस अंदर-ही-अंदर धमनियों पर दबाव बढ़ता रहता है, चर्बी जमती रहती है और दिल जरूरत से ज्यादा मेहनत करने लगता है। आधुनिक कार्डियोलॉजी और पब्लिक हेल्थ रिसर्च यह साफ कहती है कि अगर 30 के बाद सही समय पर टेस्ट और स्क्रीनिंग करा ली जाए तो हार्ट अटैक के करीब 80% मामलों को रोका जा सकता है...

पहला है ब्लड प्रेशर टेस्ट (Blood Pressure Check)

उच्च रक्तचाप, जिसे मेडिकल भाषा में हाइपरटेंशन कहते हैं। इसे अक्सर 'साइलेंट किलर' कहा जाता है। क्योंकि यह महीनों या सालों तक बिना किसी स्पष्ट लक्षण के चलता रहता है। जब ब्लड प्रेशर लंबे समय तक उच्च रहता है तो यह धमनियों की दीवारों में तनाव बढ़ाता है और उन्हें सख्त कर देता है, जो अटैक का सीधा जोखिम बढ़ाता है।

कब और कैसे चेक करें?

30 की उम्र के बाद ब्लड प्रेशर कम से कम हर 6 महीने में एक बार मापा जाना चाहिए। ब्लड प्रेशर की नॉर्मल सीमा को 120/80 mmHg से ऊपर नहीं रहना चाहिए। Journal of Hypertension और Lancet में प्रकाशित अध्ययनों में स्पष्ट दिखाया गया है कि नियमित ब्लड प्रेशर मॉनिटरिंग से हृदय संबंधी जानलेवा घटनाओं का जोखिम प्रत्यक्ष रूप से कम होता है।

दूसरा टेस्ट है कोलेस्ट्रॉल प्रोफाइल (Lipid Profile Test)

कोलेस्ट्रॉल एक सामान्य शब्द लगता है। लेकिन इसका असंतुलन गंभीर रूप से हृदय को प्रभावित कर सकता है। LDL यानी बुरा कोलेस्ट्रॉल जब बढ़ जाता है तो यह धमनियों की भीतरी दीवारों पर जमा होने लगता है और एथेरोस्क्लेरोसिस (डैमेज + टाइटनेस) पैदा करता है। यही जमा धीरे-धीरे रक्त प्रवाह को रोकता है और प्लेक फटने पर हार्ट अटैक का मुख्य कारण बनता है।

कब और कैसे चेक करें?

पूर्ण लिपिड प्रोफाइल में LDL यानी बुरा कोलेस्ट्रॉल और HDL यानी अच्छा कॉलेस्ट्रॉल, ट्राइग्लिसराइड्स और कुल कोलेस्ट्रॉल शामिल होते हैं। इसलिए 30 की उम्र के बाद यह टेस्ट साल में एक बार जरूर कराएं। अगर फैमिली हिस्ट्री है तो साल में दो बार जांच आवश्यक है। इस विषय से संबंधित रिसर्च Circulation और American Journal of Cardiology के विस्तृत विश्लेषण दिखाते हैं कि उच्च LDL स्तर सीधे हार्ट अटैक के जोखिम से जुड़े हैं, और समय रहते ट्रैकिंग से रोकथाम संभव है।



तीसरा आवश्यक टेस्ट है ब्लड शुगर टेस्ट (Fasting Glucose + HbA1c)

डायबिटीज सिर्फ शुगर की बीमारी नहीं है बल्कि यह हार्ट और ब्लड वैस्कुलर सिस्टम पर सीधा प्रभाव डालती है। लंबे समय तक उच्च ब्लड शुगर गुजरने से नसों की अंदरूनी परत क्षतिग्रस्त होती है, जिससे हृदय को रक्त ले जाने वाला नेटवर्क कमजोर पड़ता है।

कब और कैसे कराएं जांच?

फास्टिंग ब्लड शुगर वह जांच है, जो सुबह नाश्ता करने से पहले कराई जाती है। यह बताती है कि रातभर के उपवास के बाद शरीर ब्लड शुगर को कितनी संतुलित स्थिति में रख पा रहा है। कई बार दिन में शुगर सामान्य दिखती है, लेकिन सुबह खाली पेट की रिपोर्ट ही यह संकेत दे देती है कि इंसुलिन सही ढंग से काम कर रहा है या नहीं।

इसके साथ ही HbA1c जांच को नज़रअंदाज़ नहीं किया जाना चाहिए। यह कोई एक दिन की तस्वीर नहीं है। बल्कि पिछले तीन महीनों के औसत ब्लड शुगर स्तर की पूरी कहानी होती है। आधुनिक एंडोक्रिनोलॉजी इसे केवल डायबिटीज की पुष्टि के लिए नहीं बल्कि भविष्य के हार्ट रिस्क का एक अहम संकेतक मानती है।

क्योंकि लंबे समय तक थोड़ा-थोड़ा बढ़ा हुआ शुगर स्तर भी दिल और धमनियों को चुपचाप नुकसान पहुंचाता रहता है। इसलिए HbA1c जांच भी आवश्यक है क्योंकि यह पिछले 3 महीनों का औसत ब्लड शुगर स्तर बताता है। इसलिए 30 की उम्र के बाद साल में कम से कम एक बार जरूर जांच कराएं। इस विषय में New England Journal of Medicine और Diabetes Care में प्रकाशित शोध बताते हैं कि HbA1c स्तर 6.5% से ऊपर होने पर कार्डियोवैस्कुलर जोखिम काफी बढ़ जाता है।


चौथा टेस्ट है BMI & Waist Circumference (शरीर की संरचना परीक्षण)

किसी भी व्यक्ति के बॉडी मास इंडेक्स (BMI) से केवल वजन नहीं पता चलता बल्कि अतिरिक्त चर्बी (Central Obesity) खासकर पेट के आसपास जमा फैट। यह हृदय के लिए सबसे खतरनाक होता है। यह न केवल इन्सुलिन रेज़िस्टेंस का कारण बनता है बल्कि धमनियों में सूजन, ब्लड प्रेशर और कोलेस्ट्रॉल को भी बिगाड़ता है।

कब और कैसे चेक करें?

इसके लिए BMI, कमर का घेरा (पुरुषों में 90 सेमी से ऊपर और महिलाओं में 80 सेमी से ऊपर) हार्ट संबंधी बीमारियों का रिस्क बढ़ा देता है। इस बारे में World Heart Federation और WHO की रिपोर्ट्स में साफ कहा गया है कि पेट का अतिरिक्त फैट सीधे हार्ट अटैक की दर से जुड़ा हुआ है।


पांचवी आवश्यक जांच है किडनी फंक्शन टेस्ट (Kidney Function + eGFR)

किडनी और हृदय का सिस्टम आपस में जुड़ा होता है। अगर किडनी सही से रक्त को फ़िल्टर नहीं कर पा रही है तो ब्लड प्रेशर और इलेक्ट्रोलाइट संतुलन बिगड़ता है, जो हार्ट पर दबाव डालता है।

कब और कैसे चेक करें?

इसके लिए Creatinine, BUN, eGFR की जांच साल में एक बार अवश्य करानी चाहिए। क्रिएटिनिन और BUN बताते हैं कि कचरा कितना जमा है और eGFR बताता है कि किडनी उस कचरे को साफ करने में कितनी सक्षम है। यही वजह है कि डॉक्टर इन तीनों को साथ देखकर किडनी की असली स्थिति समझते हैं...

क्रिएटिनिन (Creatinine)

क्रिएटिनिन शरीर की मांसपेशियों से बनने वाला एक कचरा पदार्थ है। जब हमारी किडनी ठीक से काम कर रही होती है तो यह कचरा पेशाब के रास्ते बाहर निकाल दिया जाता है। अगर खून में क्रिएटिनिन का स्तर बढ़ने लगे तो इसका मतलब होता है कि किडनी उसे ठीक तरह से साफ नहीं कर पा रही। यानी यह किडनी की सफाई क्षमता का पहला संकेत होता है।

BUN (Blood Urea Nitrogen)

BUN बताता है कि शरीर प्रोटीन को तोड़ने के बाद बनने वाला कचरा कितनी मात्रा में खून में जमा है। किडनी का काम इस यूरिया को भी बाहर निकालना होता है। अगर BUN ज्यादा है तो यह संकेत हो सकता है कि किडनी पर दबाव बढ़ रहा है, शरीर में पानी की कमी है या प्रोटीन का मेटाबॉलिजम ठीक से संतुलित नहीं चल रहा।

eGFR (estimated Glomerular Filtration Rate)

eGFR को किडनी की वर्किंग स्पीड समझिए। यह बताता है कि आपकी किडनी एक मिनट में खून को कितनी अच्छी तरह छान पा रही है। यह आंकड़ा उम्र, लिंग और क्रिएटिनिन के आधार पर निकाला जाता है। जितना ज्यादा eGFR, उतनी बेहतर किडनी की कार्यक्षमता मानी जाती है। और जब यह धीरे-धीरे कम होने लगता है तो समझना चाहिए कि किडनी की क्षमता घट रही है। भले ही अभी कोई लक्षण दिखाई न दे। American Journal of Kidney Diseases में प्रकाशित अध्ययनों में दिखाया गया है कि किडनी का खराब फंक्शन सीधा कार्डियोवैस्कुलर जोखिम बढ़ाता है।


छठा टेस्ट है इम्यूनुलॉजिकल और सूजन मार्कर (CRP, Homocysteine)

हार्ट अटैक केवल कोलेस्ट्रॉल जमा होने की प्रक्रिया नहीं है। धमनियों में सूजन भी इसी की बुनियादी वजहों में से एक है। इसलिए CRP (C-Reactive Protein) और Homocysteine ये मार्कर शरीर में सूजन और वास्कुलर तनाव को दिखाते हैं, जिससे अटैक का खतरा पहले ही पता चल जाता है।

कब और कैसे चेक करें?

क्रोनिक सूजन वाले व्यक्तियों को साल में एक बार CRP और Homocysteine कराना चाहिए और अगर परिवार में दिल की बीमारी, हार्ट अटैक या स्ट्रोक की हिस्ट्री रही हो तो इन जांचों की अहमियत और बढ़ जाती है। ऐसे मामलों में डॉक्टर इन्हें ज्यादा नियमित अंतराल पर कराने की सलाह देते हैं।

क्योंकि शरीर में जोखिम पहले से ही मौजूद हो सकता है। CRP टेस्ट यह बताता है कि शरीर के अंदर इस समय सूजन कितनी चल रही है। CRP बार-बार ऊंचा आता है तो इसका मतलब है कि दिल, रक्त नलिकाओं या अन्य अंगों पर धीरे-धीरे दबाव बढ़ रहा है।

Homocysteine टेस्ट खून की नसों की सेहत दिखाता है। जब इसका स्तर बढ़ता है तो नसों की अंदरूनी परत को नुकसान पहुंचने लगता है। यही स्थिति आगे चलकर हार्ट अटैक, स्ट्रोक और ब्लड क्लॉट का खतरा बढ़ा सकती है। Journal of the American College of Cardiology में रिपोर्ट है कि उच्च CRP स्तर स्वयं एक स्वतंत्र हार्ट जोखिम फैक्टर है।


सातवीं जांच है, इकोकार्डियोग्राम और स्ट्रेस टेस्ट (Heart Function Testing)

इकोकार्डियोग्राम दिल की अंदरूनी तस्वीर की तरह होता है। यह दिखाता है कि दिल की मांसपेशियां ठीक से काम कर रही हैं या नहीं, वाल्व सही तरह खुल-बंद हो रहे हैं या नहीं और दिल खून को कितनी ताकत से पंप कर पा रहा है। इससे यह समझ आता है कि तनाव, हाई बीपी या पुरानी बीमारियों का असर दिल पर पड़ना शुरू हुआ है या नहीं।

स्ट्रेस टेस्ट (ट्रेडमिल टेस्ट) यह जांचता है कि जब दिल को मेहनत करनी पड़ती है, जैसे तेज चलने या चढ़ाई जैसी स्थिति में तो वह कैसे प्रतिक्रिया करता है। कई बार आराम की हालत में सब कुछ सामान्य दिखता है लेकिन जैसे ही दिल पर लोड आता है, छुपा हुआ खतरा सामने आ जाता है। इसी वजह से यह टेस्ट हार्ट अटैक से पहले मिलने वाले संकेतों को पकड़ने में बहुत मददगार होता है।

कब और कैसे चेक करें?

जिनके परिवार में हार्ट संबंधी बीमारियों की हिस्ट्री है या ऊपर बताई सभी टेस्ट में कोई संकेत मिला है, उन्हें ये जांच करानी चाहिए। इसलिए 30 के बाद हर 2–3 साल में भी यह परीक्षण उपयोगी हो सकता है। European Heart Journal और Circulation के अध्ययन में पाया गया कि स्ट्रेस टेस्ट हृदय रोग के जोखिम को पकड़ने में प्राथमिक लक्षणों से बहुत पहले सहायक हो सकता है।


इसलिए 30 की उम्र के बाद हार्ट अटैक को भाग्य मानकर दुखी ना हों बल्कि समय पर सही जांच कराकर समय रहते उपचार कराएं और जीवनशैली में आवश्यक बदलाव करके बीमारी को बढ़ने से रोकें। हार्ट अटैक सिर्फ कोई अचानक होने वाली घटना नहीं बल्कि कई वर्षों से इकट्ठा हुए छोटे-छोटे जोखिमों का प्रतीक है। यहां बताया गया हर टेस्ट सचमुच प्रभावी और हृदय की सेहत को नुकसान पहुंचाने वाले कारणों को पहचानने का आसान उपाय है।


डिसक्लेमर- यह आर्टिकल जागरूकता के उद्देश्य से लिखा गया है। किसी भी सलाह को अपनाने से पहल डॉक्टर से परामर्श करें।



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