
यूके के बाद अमेरिका में बढ़ा ‘सुपरफ्लू’ जानें क्यों है अधिक खतरनाक?
अमेरिका के सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल ऐंड प्रिवेंशन के आंकड़े बताते हैं कि हाल के हफ्तों में फ्लू के कारण अस्पताल में भर्ती होने वाले लोगों में बहुत वृद्धि हुई है
फ्लू को अक्सर लोग मौसमी बीमारी मानकर हल्के में ले लेते हैं। दो–तीन दिन बुखार, थोड़ी खांसी, और फिर सब ठीक। लेकिन इस सर्दी में यूके के बाद अब अमेरिका में जिस तरह से सुपरफ्लू (Superflu) के मामलों में तेज़ बढ़ोतरी देखी जा रही है, उसने स्वास्थ्य विशेषज्ञों को सतर्क कर दिया है। यह केवल सामान्य फ्लू नहीं बल्कि इंफ्लूएंजा (Influenza-A (H3N2) स्ट्रेन से जुड़ा एक अधिक संक्रामक और जटिल रूप है, जो फेफड़ों और पूरे श्वसन तंत्र पर गहरी चोट कर सकता है।
अमेरिका के सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल ऐंड प्रिवेंशन (CDC) के आंकड़े बताते हैं कि हाल के हफ्तों में फ्लू के कारण अस्पताल में भर्ती होने की दर में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। यही कारण है कि इसे मीडिया में 'सुपरफ्लू' कहा जा रहा है। यानी ऐसा फ्लू जो तेजी से फैलता है और कुछ समूहों में गंभीर रूप ले सकता है।
सुपरफ्लू में क्या अलग है?
वैज्ञानिक भाषा में सुपरफ्लू कोई नया वायरस नहीं है बल्कि H3N2 स्ट्रेन का वही रूप है, जो हर कुछ वर्षों में अपने एंटीजनिक बदलाव (Antigenic Drift) के कारण ज्यादा आक्रामक हो जाता है। इस विषय पर PubMed रिसर्च पर प्रकाशित कई रिव्यू स्टडीज़ बताती हैं कि H3N2 वायरस की सतह पर मौजूद प्रोटीन बार-बार बदलते हैं, जिससे शरीर की पहले से बनी प्रतिरक्षा और वैक्सीन दोनों को इसे पहचानने में दिक्कत होती है। यही कारण है कि H3N2 से जुड़े फ्लू सीज़न अक्सर ज्यादा अस्पताल में भर्ती और जटिलताओं के लिए जाने जाते हैं, खासकर बुज़ुर्गों और कमजोर रोग प्रतिरोधक क्षमता वाले लोगों में।
लक्षण पुराने प्रभाव अधिक गहरा
सुपरफ्लू के लक्षण पहली नजर में सामान्य फ्लू जैसे ही लगते हैं। तेज़ बुखार, सूखी या गहरी खांसी, गले में दर्द, शरीर टूटना और असामान्य थकान। लेकिन रिसर्च बताती है कि H3N2 संक्रमण में निमोनिया, सांस की तकलीफ और लंबे समय तक कमजोरी का खतरा अधिक रहता है। यही कारण है कि द लैंसेट रेस्पिरेटरी मेडिसिन और जर्नल ऑफ इंफेक्शियस डिजीज में प्रकाशित अध्ययनों में इसे क्लिनिकली सीवियर इंफ्लूऐंजा स्ट्रेन माना गया है।
क्यों टीका लगाने के बाद भी लोग बीमार पड़ रहे हैं?
यह सवाल स्वाभाविक है कि आखिर टीका लगाने के बाद भी लोग सुपर फ्लू से बीमार क्यों पड़ रहे हैं? इस बारे में ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस और PubMed पर उपलब्ध अध्ययनों के अनुसार, हाल के फ्लू सीज़न में H3N2 के खिलाफ वैक्सीन की प्रभावशीलता औसतन 30–40% के आसपास रही है। इसका अर्थ यह नहीं कि टीका बेकार है बल्कि यह है कि ये संक्रमण को पूरी तरह रोक नहीं पाता।
लेकिन एक अहम बात यहां समझनी आवश्यक है। PMC (PubMed Central) में प्रकाशित ऑब्ज़र्वेशनल स्टडीज़ बताती हैं कि जिन लोगों ने फ्लू का टीका लगवाया था, उनमें बीमारी की गंभीरता, अस्पताल में भर्ती और जटिलताओं का खतरा स्पष्ट रूप से कम देखा गया। यानी टीका ढाल की तरह काम करता है। बीमारी का हमला हो सकता है लेकिन नुकसान सीमित रहता है।
उम्र और प्रतिरक्षा क्यों तय करती है खतरा?
ECDC और CDC के साझा विश्लेषण बताते हैं कि H3N2 का सबसे ज़्यादा असर बुज़ुर्गों, छोटे बच्चों, दिल-फेफड़े की बीमारी वालों और कमजोर प्रतिरक्षा वाले लोगों पर पड़ता है। उम्र के साथ शरीर की प्रतिरक्षा तंत्र की प्रतिक्रिया धीमी हो जाती है और यही वजह है कि सुपरफ्लू इन वर्गों में तेजी से गंभीर रूप ले सकता है।
वैज्ञानिक चेतावनी क्या है?
यूरोपियन सेंट ऑफर डिजीज प्रिवेंशन ऐड कंट्रोल (ECDC) की शुरुआती रिपोर्ट्स साफ कहती हैं कि आने वाले फ्लू सीज़न में H3N2 का प्रभाव बना रह सकता है। साथ ही, जर्नल ऑफ वायरोलॉजी (Journal of Virology) में प्रकाशित रिसर्च यह भी बताती है कि वायरस के लगातार बदलते स्वरूप के कारण हर साल सतर्कता और निगरानी ज़रूरी है।
अब क्यों बचाव पहले से अधिक आवश्यक है?
सुपरफ्लू हमें यह याद दिलाता है कि फ्लू केवल मौसम की बीमारी नहीं है। यह एक डायनामिक वायरल संक्रमण है, जो कमजोर जगह देखते ही हमला करता है। टीकाकरण, हाथों की स्वच्छता, भीड़ में सावधानी और लक्षण दिखने पर समय रहते डॉक्टर से संपर्क करना, ये सब अब सतर्कता नहीं बल्कि आवश्यकता बन चुके हैं। वैज्ञानिक रिसर्च और उपलब्ध आंकड़े एक ही बात कहते हैं कि फ्लू को हल्के में लेना, शरीर को भारी कीमत चुकाने पर मजबूर कर सकता है।
डिसक्लेमर- यह आर्टिकल जागरूकता के उद्देश्य से लिखा गया है। किसी भी सलाह को अपनाने से पहले डॉक्टर से परामर्श करें।

